स्पीकर पद के बहाने गठबंधनों की एकजुटता की परीक्षा; NDA के पास बहुमत से अधिक 293 सांसद

18वीं लोकसभा का आगाज स्पीकर के चुनाव के साथ ही डिप्टी स्पीकर पद पर विपक्ष की दावेदारी को लेकर सत्ता पक्ष से टकराव से हो रहा है। नए सदन के पहले दो दिन इन पदों के लिए जोड़-तोड़, चर्चाओं और आरोप-प्रत्यारोप के बीच नए सांसदों की शपथ के नाम रहे। अब सबकी नजर आज होने वाले लोकसभा अध्यक्ष पद के चुनाव पर टिक गई है

किसी विपक्षी दल के पर्याप्त सांसद न होने से 16वीं व 17वीं लोकसभा में नहीं था नेता प्रतिपक्ष

16वीं और 17वीं लोकसभा में विपक्ष के किसी भी दल के इतने सांसद नहीं जीते थे कि उसे नेता प्रतिपक्ष का पद दिया जा सके। नेता प्रतिपक्ष पद हासिल करने के लिए लोकसभा के कुल 543 सदस्यों के कम से कम 10 फीसदी यानी 54 सांसद होना अनिवार्य है। 16वीं लोकसभा में कांग्रेस के 44 व 17वीं में 52 सांसद जीते थे। इस बार पार्टी के 99 सांसद जीते हैं। हालांकि राहुल गांधी की ओर से वायनाड सीट खाली करने से यह संख्या 98 रह गई है। इसके बावजूद नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए यह पर्याप्त है।

राहुल गांधी ने ममता बनर्जी से की बात
मंगलवार को जब विपक्षी गठबंधन ने लोकसभा स्पीकर पद के लिए के सुरेश का नामांकन कराया था तो टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी ने कहा था कि उनकी पार्टी से इस बारे में कोई चर्चा नहीं की गई। बनर्जी के इस बयान को गठबंधन में मतभेद के तौर पर देखा गया। अब खबर आई है कि राहुल गांधी ने आज टीएमसी चीफ ममता बनर्जी से बात की है।

…तो पर्चियों से होगा मत विभाजन
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य के मुताबिक नए सदन के सदस्यों को अभी सीटें आवंटित नहीं की गई हैं तो इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले प्रणाली का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। पेश किए गए प्रस्तावों को उसी क्रम में एक-एक करके रखा जाएगा, जिस क्रम में वे प्राप्त हुए हैं। यदि आवश्यक हुआ तो उन पर मत विभाजन के माध्यम से निर्णय लिया जाएगा।

यदि अध्यक्ष के नाम का प्रस्ताव पारित हो जाता है (सदन द्वारा ध्वनिमत से स्वीकृत हो जाता है), तो पीठासीन अधिकारी घोषणा करेगा कि सदस्य को सदन का अध्यक्ष चुन लिया गया है और बाद के प्रस्ताव पर मदतान नहीं होगा। यदि विपक्ष मत विभाजन पर जोर देता है तो वोट कागज की पर्चियों पर डाले जाएंगे। इसमें परिणाम आने में थोड़ा वक्त लगेगा।

टीएमसी के रुख से राहत
टीएमसी के रुख ने मंगलवार को पहले कांग्रेस को असहज कर दिया था। उम्मीदवार उतारने के सवाल पर सहमति नहीं बनाने के आरोप के साथ टीएमसी ने कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। लेकिन शाम को टीएमसी के रुख में बदलाव दिखा और उसके के सुरेश को समर्थन पर राजी होने से कांग्रेस को राहत मिली।

इसलिए विपक्ष को नहीं दे रहे उपाध्यक्ष पद
भाजपा विपक्ष को उपाध्यक्ष का पद देती तो उसे अध्यक्ष पद भी गंवाना पड़ता। अध्यक्ष पर अपने उम्मीदवार के समर्थन के बदले भाजपा ने उपाध्यक्ष पद राजग के दूसरे सबसे बड़े दल टीडीपी को देने का वादा किया है। अगर वह उपाध्यक्ष पद विपक्ष को देती तो अध्यक्ष पद टीडीपी को देने का दबाव बढ़ जाता। सदन में बहुमत से 32 सीट दूर भाजपा, अध्यक्ष पद किसी हाल में अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती।

सुरेश को 235 तक का समर्थन संभव
नई लोकसभा में छोटे दलों के नौ और सात निर्दलीय सांसद चुन कर आए हैं। इनमें अकाली दल को छोड़कर अन्य सभी का झुकाव कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में हो सकता है। चूंकि टीडीपी राजग गठबंधन में है। कांग्रेस को वाईएसआरसीपी के साथ की उम्मीद थी, लेकिन वह राजग के समर्थन में है।
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कांग्रेस के लिए एकता की चुनौती
कांग्रेस के सामने चुनौती विपक्षी गठबंधन में एकता कायम रखते हुए राजग में सेंध लगाने और निर्दलीय व दूसरे छोटे दलों के 13 सांसदों को अपने खेमे में लाने की है। तीन निर्दलीयों पप्पू यादव, विशाल पाटील और मोहम्मद हनीफ के समर्थन के बाद विपक्षी गठबंधन के सांसदों की संख्या 235 हो गई है।

अमित शाह तैयार कर रहे रणनीति
राजग की ओर से रणनीति की कमान गृह मंत्री अमित शाह के हाथ में है। उन्होंने मंगलवार को राजग के सहयोगी दलों के नेताओं के साथ बैठक कर गठबंधन की एकता सुनिश्चित की। नेताओं को मतदान के नियम बताए गए और सभी सांसदों की हर हाल में उपस्थिति सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिए हैं।

राजग को आरामदायक बहुमत
संख्या बल की दृष्टि से भाजपा की अगुवाई वाले राजग को आरामदायक बहुमत हासिल है। राजग के पक्ष में 293 सांसद हैं जो जीत के लिए जरूरी संख्या से 21 ज्यादा हैं। भाजपा की चुनौती यह है कि मतदान के दौरान राजग में यह एकजुटता बनी रहे। एक भी दल का राजग उम्मीदवार से किनारा करना, गठबंधन में फूट पड़ने का संदेश देगा।

प्रतिष्ठा का सवाल
लोकसभा स्पीकर के लिए बुधवार को होने वाला चुनाव भाजपा और इंडिया गठबंधन की अगुवाई करने वाली कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। भाजपा के सामने जहां हर हाल में जीत के इतर राजग में एकजुटता बनाए रखने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस के सामने इंडिया ब्लॉक में शामिल दलों को एकसूत्र में बांधे रखने की। दोनों ही खेमे एकदूसरे के गठजोड़ में सेंध लगाने की कोशिश में भी जुट गए हैं।

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