“यूं ही बदनाम नहीं है दिल्ली का सफदरजंग अस्पताल”

आपको बता दें भारत का सर्वश्रेष्ठ और सबसे पुरातन सफदरजंग हॉस्पिटल जिसका निर्माण वर्ष 1942 में दूसरे विश्व युद्ध के समय केवल 204 विस्तर से शुरू किया गया था । वर्ष 1956 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना तक, दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल एकमात्र तृतीयक देखभाल अस्पताल था। 1962 में, यह दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर छात्रों के प्रशिक्षण और शिक्षण का केंद्र बन गया। वर्ष 1973 से 1990 तक, अस्पताल और इसके संकाय यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज के साथ जोड़ दिया गया। लेकिन वर्ष 1998 में इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ,बाद में वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज को भी जोड़ दिया गया। इस तरह आज 2900 विस्तरों के साथ समस्त आधुनिक उपकरण से सुसज्जित है सफदरजंग हॉस्पिटल। यह अस्पताल एम्स के ठीक सामने सड़क के दूसरी तरफ स्थित है।
 

"यूं ही बदनाम नहीं है दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल"

वहीं दुसरा भारत का सर्वश्रेष्ठ चिकित्सालय एम्स(AIIMS) अर्थात ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस” जिसे हिन्दी में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के नाम से आप जानते हैं जिसे भी वर्ष 1956 में केवल 200 विस्तर के साथ ही समस्त उपकरण से सुसज्जित किया गया था। जिसमें आज की तारीख में 2362 विस्तर एवं तमाम अत्याधुनिक उपकरण मौजूद है। लेकिन इन दोनों अस्पताल में तुलनात्मक दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो बहुत ही ज्यादा कार्यशैली में अंतर पाया जाता है। जिम्मेदारी, और लापरवाही, यह दो ही शब्द ऐसे हैं जो किसी को ऊपर उठाता है तो किसी को जमींदोज कर देता है। आज हम आपको सिर्फ और सिर्फ यह बताऐंगे कि किस तरह अपनी ख्याति पर पहल करते हुए अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान (एम्स) सर्वप्रथम नंबर पर है। वहीं लापरवाही की वजह से दूसरे स्थान से भी नीचे खिसकने की तैयारी में सफदरजंग अस्पताल का नाम किस तरह जमींदोज होता जा रहा है। जिसकी वजह क्या है ? इस पर हम विशेष जानकारियां आपको देंगे।

"यूं ही बदनाम नहीं है दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल"

मगर आज वहीं सफदरजंग अस्पताल का नाम दूसरे स्थान पर क्यों आता है ? इन दोनों अस्पताल में तुलनात्मक दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो बहुत ही ज्यादा कार्यशैली में अंतर पाया जाता है। जिम्मेदारी, और लापरवाही, यह दो ही शब्द ऐसे हैं जो किसी को ऊपर उठाता है तो किसी को जमींदोज कर देता है। आज हम आपको सिर्फ और सिर्फ यह बताऐंगे कि किस तरह अपनी ख्याति पर पहल करते हुए अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान (एम्स) सर्वप्रथम नंबर पर है। वहीं लापरवाही की वजह से दूसरे स्थान से भी नीचे खिसकने की तैयारी में सफदरजंग अस्पताल का नाम किस तरह जमींदोज होता जा रहा है। जिसकी वजह क्या है ? इस पर हम विशेष जानकारियां आपको देंगे।

किसी भी रोग से संबंधित तत्काल आपातकालीन स्थिति में किसी भी समय किसी भी दिन,अगर आप अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स जैसे हॉस्पिटल में जाते हैं । तो आपका चिकित्सा संभव है, और चिकित्सक द्वारा उसकी पूरी तरह पड़ताल की जाती है। उसके बाद बिना किसी पैरवी के डॉक्टरों के टीम को यह लगता है कि इस तरह का रोग ग्रसित मरीज भर्ती के दायरे में अथवा भर्ती करने योग्य है तो निश्चित रूप से वहां पर आपके मरीज का दाखिला तय है। उसके बाद आपको अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में अर्थात एम्स में दाखिला कर दिया जाता है

"यूं ही बदनाम नहीं है दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल"

पर वहीं इसके विपरीत अगर आप सफदरजंग अस्पताल में आपातकालीन स्थिति में भी जाते हैं तो आपको जूनियर डॉक्टरों द्वारा इंजेक्शन अथवा गोलियां देकर टरका दिया जा है अथवा घर को भेज दिया जाता है । और तो और वहाँ आपातकालीन विभाग में तो डाॅ0 अपनी कुर्सी छोड़ने तक को तैयार नहीं रहता आपको स्वयं अपने मरीज के बारे में कुर्सीआसीन डाॅ0 को जाकर तमाम परेशानियों को बताना होगा वहाँ तब वह चिकित्सक एक स्लिप पर जरुरियात इंजेक्शन लिखेंगे जिसे लेकर आपको कतार मैं लगना होगा। जीतने में आपका नंबर आएगा उससे पहले आपका मरीज सफदरजंग अस्पताल को अलविदा कर देता है। अस्पताल में जूनियर डॉक्टर और सीनियर डॉक्टर की आपसी तालमेल का अभाव है। जूनियर डॉक्टर के द्वारा ही तमाम परीक्षण से आप को सफदरजंग अस्पताल में गुजरना पड़ता है जिसमें तमाम नियमों का अनदेखी करते हुए मरीज की बीमारी को लापरवाही से लेते हुए उनके साथ खेल खेला जाता है।

आपके मरीज को किसी गहन बीमारी की पड़ताल के दौरान अथवा परीक्षण के दौरान अगर यह पता चलता है भी है कि आपके मरीज को दाखिले की आवश्यकता है तो जूनियर डॉक्टर ही यह निर्णय लेते हैं कि इनको दाखिला देना चाहिए अथवा नहीं। अगर आपको जूनियर डॉक्टर के दाखिला लेने के बावजूद भी सबंधित वार्ड के लिए शिफ्ट कर दिया जाता है यहाँ तक की चिकित्सकों तो यह भी पता नहीं होता कि सीट खाली है अथ़वा नहीं। पुणः वहां भी जूनियर डॉक्टरों के द्वारा गहनता से नहीं लेते हुए येन केन प्रकारेण ईलाज का प्रक्रिया शुरू कर दिया जाता है  जब आप सबंधित वार्ड में जाते हैं तो वहां भी सीट के अभाव में आपके मरीज को जमीन पर लिटा कर ग्लूकोज की बोतल लगाकर आपके हाथों थमा दिया जाता है। पर जब वही मरीज खतरे के दायरे में पहुँच जाती है तो आनन फानन में सीट मुहैया कर ऑक्सीजन लाइफ सपोर्ट के साथ उन्हें सभी उचित इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है मगर अब कुछ करने से क्या फायदा मरीज तो यहाॅ भी चिकित्सक व चिकित्सालय को अलविदा कर गई।

"यूं ही बदनाम नहीं है दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल"

जब हमने इस बावत डाॅ0से बात की और पूछा कि मरिजों के साथ ऐसा अमानवीयता का व्यवहार क्यों ? तो उन्होंने कहा सरकार ने जो नए आदेश पारित किए हैं उसके अनुसार हम दाखिला योग्य किसी भी मरीज को दाखिला देने से मना नहीं कर सकते सीट नहीं होते हुए भी हमें मजबूरी में इलाज करना पड़ता है । मैं यह सुनकर हतप्रभ रह गया। जब जाकर मुझे आभास हुआ की यही वजह है कि जिसका खामियाजा मरिजों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। ऐसा नहीं है की सफदरजंग अस्पताल में सीनियर डॉक्टरों का अभाव है मगर सीनियर डॉक्टर दिल्ली के राजनीति के दायरे में मशगूल रहते हैं जिसका खामियाजा मरीजों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है।

अस्पतालकर्मी व अस्पताल का नाम बदनाम होने से बचाने के लिए इलाज किया जाता है। इस उद्देश्य से मरिजों का इलाज नहीं की जाती है कि की मरीज की जान बचानी है। महज सीनियर डॉक्टरों का तनख्वाह जारी रहता है उसमें कोई कटौती नहीं होती ना ही उनसे कोई जवाब तलब किया जाता है कि आपने इस माह कितने मरीजों को देखें और कितने को आपने रोग मुक्त कर घर भेजा।यानी रोगियों के विषय कोई आंतरिक अथवा  वाह्य पड़ताल किसी भी तरह से ना के बडा़बर है। जूनियर डॉक्टर और सीनियर डॉक्टर के बीच तालमेल का अभाव के कारण ही वाह्यरोगी आने से यहां कतराते  हैं। हलांकि जब हम एम्स के वाह्यरोगी के कतार में लगे मरीजों के परिजनों से जानना चाहा की आप सफदरजंग में क्यों नहीं चले जाते तो उनका प्रतिक्रिया बेहद चौंकाने वाला था। कुछ इस तरह, की भाई साहब मुझे अपने मरीजों की जान बचानी है, जान गवानी नहीं  है ।

"यूं ही बदनाम नहीं है दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल"

आज इसी लापरवाही की वजह से लगातार सफदरजंग में मरीजों की मौतें हो रही है रोजाना कइयों मौतें ऎसी है जिसमें परिजनों ने चिकित्सक को लापरवाही का गुनहगार माना गया है अंततः यही कहूंगा की केंद्र सरकार अधिनस्थ यह अस्पताल सिर्फ और सिर्फदिल्ली वालों को ही इसका लाभ नहीं मिलता बल्कि तमाम पड़ोसी राज्यों के लोग भी लाभान्वित होते हैं।

अतः इस अस्पताल को केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित कराते हुए बताना चाहूंगा की इसे सुव्यवस्थित करें इसका नाम तो जमींदोज हो ही रहा है कहीं ऐसा नहीं की आनेवाले समय में सिर्फ और सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही सिमटकर रह जाय।  

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