एड्स से बचने जागरुकता जरुरी (1 दिसम्बर 2019 विश्व एड्स दिवस)

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विश्व एड्स दिवस प्रत्येक वर्ष 1 दिसंबर को मनाया जाता है. 1988 के बाद से, इस दिन एचआईवी संक्रमण की वजह से एड्स के सन्दर्भ में लोगों को जागरूक बनाने के लिए मनाया जाता है, साथ ही इस बीमारी की वजह से मृत्यु को प्राप्त लोगो को याद करने के लिए भी इस दिवस को मनाया जाता है. जेम्स डब्ल्यू बुन और थॉमस नेटर ऐसे  पहले व्यक्ति थे जिन्होनें अगस्त 1987 में विश्व एड्स दिवस मनाया था. ये लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन में एड्स पर ग्लोबल कार्यक्रम (डब्ल्यूएचओ) के लिए अधिकारियों के रूप में जिनेवा, स्विट्जरलैंड में नियुक्त थे. इस दिवस पर दुनिया भर में सरकार और स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले पेशेवरों, गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के द्वारा  एड्स के कारण, रोकथाम, नियंत्रण और तथ्यों पर दुनिया को शिक्षित करने का वृहद् कार्यक्रम चलाया जाता है. आठ सरकारी सार्वजनिक स्वास्थ्य दिवासों को विश्व एड्स दिवस के रूप में चिह्नित किया गया है. वर्ष 1995 में, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के द्वारा आधिकारिक तौर पर इस दिन को अधिसूचित किया है।
पिछले तीन दशकों से, एड्स की वजह से दुनिया भर में 36 लाख से अधिक लोग इसके शिकार हुए हैं और करीब 35,300,000 लोगों की मौत हो गई है. यह वर्तमान में सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दों में से एक है. हालांकि एंटीरेट्रोवाइरल उपचार के लिए एक जागरूकता विश्व स्तर पर अभी भी जारी है  लेकिन अभी भी एड्स महामारी 270000 बच्चों सहित हर साल लगभग 2 लाख जीवन को ग्रसित कर रहा है।
विश्व एड्स दिवस की थीम:
विश्व एड्स दिवस अभियान के लिए विषयों का चयन डब्ल्यूएचओ, यूएनएड्स (एचआईवी और एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम) और रोकथाम, उपचार और एचआईवी/एड्स के बारे में जागरूकता में शामिल कई वैश्विक और घरेलू एजेंसियों द्वारा किया जाता है. 2008 से शुरू हर साल, विश्व एड्स अभियान (डब्ल्यूएसी) की वैश्विक संचालन समिति द्वारा विषय का चयन किया जाता है।
2005-10 के दौरान, प्रत्येक वर्ष विश्व के लिए एड्स दिवस के लिए चुना गया विषय था “बंद करो एड्स”. इस विषय पर वर्ष 2010 तक एचआईवी/एड्स की रोकथाम, उपचार, देखभाल और जागरूकता के लिए जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए राजनीतिक नेताओं के द्वारा प्रेरित करने के लिए विविध आयामों पर विचार बनाया गया था. साथ ही उनके द्वारा विविध कार्यक्रमों को अपनाने पर भी बल दिया गया है।
2010 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस दिवस हेतु पूरी तरीके से एक अन्य थीम पर ध्यान दिया गया था. इस अवसर पर एडवर्ड डी पडीला द्वारा फालेन गार्डियन एंजेल्स को थीम बनाया गया था और इसे “विश्व एड्स दिवस की आधिकारिक स्क्रिप्ट” भी बनाया गया था। ऍफ़ जी ए  इस महामारी के सभी तथ्यों और सन्दर्भों की व्याख्या करता है और उन समलैंगिक और अन्य लोगों के सभी विवरण और एचआईवी/एड्स के पहलुओं का वर्णन करता है जोकि वर्ष 1985 में पहले वर्ष ही इस महामारी से ग्रसित थे।
2012 के बाद से विश्व एड्स दिवस के लिए बनाई गई थीम “शून्य के स्तर को प्राप्त करना और इसके संक्रमण को शून्य रखना” था. 2014 में, विश्व एड्स दिवस के लिए अमेरिकी फेडरल विषय था”: साथी के ऊपर ध्यान देना और एड्स मुक्त पीढ़ी को प्राप्त करना”
इंटरनेशनल एड्स वैक्सीन इनीशिएटिव (आईएवीआई)
आईएवीआई एक अंतरराष्ट्रीय गैर लाभ, सार्वजनिक-निजी साझेदारी संगठन है। यह संस्था एड्स की रोकथाम और उपचार के लिए टीके के विकास को प्रोत्साहित करने का कार्य करती है। आईएवीआई वैक्सीन के अनुसंधान और विकास में संलिप्त संस्था है। इसके अलावा यह नीतियों का विश्लेषण भी करती है और एचआईवी की रोकथाम के क्षेत्र के लिए एक कार्डिनल बिंदु के रूप में कार्य करती है, साथ ही और एड्स की परीक्षण प्रक्रिया को भी संपन्न करती है। इसके अलावा एड्स के टीकाकरण के लिए शिक्षित करने के लिए समुदायों के साथ सूचना का आदान प्रदान करती है। यह संगठन पहले से मौजूद एचआईवी की रोकथाम और उपचार कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए तकनीकों पर अनुसन्धान करती है। यह संस्था पूरी दुनिया में आम जनता के लिए एड्स के टीके के भविष्य में निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी लेती है।
भारत के सन्दर्भ में एड्स से सम्बंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं:
1. भारत सरकार द्वारा जारी किए गए आकड़ों के अनुसार भारत में एचआईवी के रोगियों की संख्या लगभग 2.1 मिलियन है।
2. 15 वर्ष से कम आयु के संक्रमित बच्चों की संख्या सभी रोगियों की संख्या का 3.5% है, जबकि 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग के रोगियों की संख्या सभी रोगियों की संख्या का 83% है।
3. देश में एचआईवी संक्रमित रोगियों में महिलाओं की संख्या 39% अर्थात 930000 है।
4. देश के कुल एचआईवी संक्रमित रोगियों में से लगभग 55% रोगी चार राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश (5 लाख), महाराष्ट्र (4.2 लाख), कर्नाटक (2.5 लाख) और तमिलनाडु (लगभग 1.5 लाख) में रहते हैं।
5. बंगाल, गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार में से प्रत्येक राज्य में एचआईवी संक्रमित रोगियों की संख्या लगभग 1 लाख है जो भारत में कुल रोगियों की संख्या का लगभग 22% है।
एड्स के लक्षण अगर किसी व्यक्ति को महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें:
1. वजन घटना
2. बुखार
3. मांसपेशियों में दर्द
4. जोड़ो का दर्द
5. गले में खराश
6. थकान
7. बढ़ी हुई ग्रंथियाँ
8. ठंड लगना
9. दुर्बलता
10.लाल चकत्ते
11.रात के दौरान पसीना

एड्स रोग का उपचार
औषधी विज्ञान में एड्स के इलाज पर निरंतर संशोधन जारी हैं। भारत, जापान, अमरीका, युरोपीय देश और अन्य देशों में इस के इलाज व इससे बचने के टीकों की खोज जारी है। हालांकी एड्स के मरीज़ों को इससे लड़ने और एड्स होने के बावजूद कुछ समय तक साधारण जीवन जीने में सक्षम हैं परंतु अंत में मौत निश्चित हैं। एड्स लाइलाज हैं। इसी कारण आज यह भारत में एक महामारी का रूप हासिल कर चुका है। भारत में एड्स रोग की चिकित्सा महंगी है, एड्स की दवाईयों की कीमत आम आदमी की आर्थिक पहुँच के परे है। कुछ विरल मरीजों में सही चिकित्सा से 10-12 वर्ष तक एड्स के साथ जीना संभव पाया गया है, किंतु यह आम बात नही है।
ऐसी दवाईयाँ अब उपलब्ध हैं जिन्हें प्रति उत्त्क्रम-प्रतिलिपि-किण्वक विषाणु चिकित्सा  दवाईयों के नाम से जाना जाता है। सिपला की ट्रायोम्यून जैसी यह दवाईयाँ महँगी हैं, प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 15000 रुपये होता है और ये हर जगह आसानी से भी नहीं मिलती। इनके सेवन से बीमारी थम जाती है पर समाप्त नहीं होती। अगर इन दवाओं को लेना रोक दिया जाये तो बीमारी फ़िर से बढ़ जाती है, इसलिए एक बार बीमारी होने के बाद इन्हें जीवन भर लेना पड़ता है। अगर दवा न ली जायें तो बीमारी के लक्षण बढ़ते जाते हैं और एड्स से ग्रस्त व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है।
एक अच्छी खबर यह है कि सिपला और हेटेरो जैसे प्रमुख भारतीय दवा निर्माता एच.आई.वी पीड़ितों के लिये शीघ्र ही पहली एक में तीन मिश्रित निधिक अंशगोलियाँ बनाने जा रहे हैं जो इलाज आसान बना सकेगा (सिपला इसे वाईराडे के नाम से पुकारेगा)। इन्हें आहार व औषध मंत्रि-मण्डल  से भी मंजूरी मिल गई है। इन दवाईयों पर प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 1 लाख रुपये होगा, संबल यही है कि वैश्विक कीमत से यह 80-85 प्रतिशत सस्ती होंगी।

एड्स ग्रस्त लोगों के प्रति व्यवहार
एड्स का एक बड़ा दुष्प्रभाव है कि समाज को भी संदेह और भय का रोग लग जाता है। यौन विषयों पर बात करना हमारे समाज में वर्जना का विषय रहा है। निःसंदेह शतुरमुर्ग की नाई इस संवेदनशील मसले पर रेत में सर गाड़े रख अनजान बने रहना कोई हल नहीं है। इस भयावह स्थिति से निपटने का एक महत्वपूर्ण पक्ष सामाजिक बदलाव लाना भी है। एड्स पर प्रस्तावित विधेयक को अगर भारतीय संसद कानून की शक्ल दे सके तो यह भारत ही नहीं विश्व के लिये भी एड्स के खिलाफ छिड़ी जंग में महती सामरिक कदम सिद्ध होगा।

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