जानिए कैसे शिवराज सिंह चौहान ने संगठन से सत्ता तक एक-एक कदम चलकर हासिल किया शिखर

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भोपाल। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी चौथी पारी में अलग ही तेवर, नए अंदाज में हैं। बच्चियों-महिलाओं की सुरक्षा हो या किसान-गरीब के कल्याण का संकल्प या विद्यार्थियों की शिक्षा से लेकर युवाओं को रोजगार तक, शिवराज के पिछले कार्यकाल इन वर्गो के लिए समर्पित रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी कार्यशैली में कसावट के साथ संघ के एजेंडे की परछाई देखी जा सकती है।

वह सुशासन (गुड गवर्नेंस) के लिए सरकारी मशीनरी को दुरुस्त करते देखे जा सकते हैं, तो लव जिहाद के खिलाफ कैबिनेट से प्रस्ताव मंजूर कर राजयपाल को भेजा जा चुका है। ऐसे में देशभर में अन्य मुख्यमंत्रियों से दो कदम आगे चौहान की चर्चाएं हो रही हैं। आखिर चौहान का यह रूप चौथे कार्यकाल में किसी मकसद से सामने आ रहा है या वह इन्हीं तेवरों के साथ सियासत में रहे हैं? आइए, उनके सियासी सफर से समझते हैं कि उनका संगठन से सत्ता के शिखर तक कैसा सफर रहा।

भोपाल के करीब सीहोर जिले में शिवराज चौहान का गांव

चौहान में नेतृत्व क्षमता के सामने आने की पहली घटना बेहद दिलचस्प है। शिवराज का गांव जैत राजधानी भोपाल के करीब सीहोर जिले के बुधनी में है। गांव के स्कूल में शिक्षकों व घर में बुजुर्गो से उन्होंने अन्याय के खिलाफ कई कहानियां सुन रखी थीं। शिवराज को पता चला कि खेतों में काम करने वाले मजदूरों को पारिश्रमिक बेहद कम मिलता है, तो उन्होंने गांव के किसानों जिसमें उनके घर के लोग भी थे, उनके खिलाफ आंदोलन किया। मजदूरों को खेतों में जाने से रोका और उचित मजदूरी दिलाकर ही माने। हालांकि उन्हें इसके बदले बतौर सजा पढ़ने के लिए भोपाल भेज दिया गया।

भोपाल में 1975 में मॉडल हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्रसंघ अध्यक्ष बने। आपातकाल का विरोध किया तो 1976-77 में भोपाल जेल में बंद किए गए। इसके बाद तो जनता की हर समस्या के लिए आंदोलन और जेल जाने की शुरुआत ही हो गई। जागृति के लिए लंबी पदयात्राएं अकेले ही शुरू कर देते, जिसमें बाद में हजारों लोग खुद जुड़ जाते। इसी के चलते सीहोर में उन्हें ‘पांव-पांव वाले भैया’ कहा जाने लगा।

1988 से 91 तक भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रहे

चौहान की सियासी पारी 1977 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक से जुड़ाव के साथ हुई। 1977 में विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री के रूप में छात्र राजनीति में कदम रखा और विभिन्न पदों पर रहते हुए 1988 से 91 तक भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रहे। 1990 में पहली बार बुधनी से विधायक, तो 91 में विदिशा से पहली बार सांसद बने। चौहान 96, 98 और चौथी बार 1999 में यहीं से सांसद बने।

इस दौरान सरकार की विभिन्न समितियों से जुड़े रहे। साथ ही संगठन में भी विभिन्न पदों पर सक्रिय भूमिका निभाई। 1991-92 मे अखिल भारतीय केशरिया वाहिनी के संयोजक, 92 में अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव, 92-94 तक भाजपा के प्रदेश महासचिव रहे। वर्ष 2000 से 03 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। 2005 में मध्य प्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किए गए।

पहली बार 2005 में बने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री

संगठन से सत्ता तक के दीर्घ अनुभव का लाभ चौहान को 2005 में मिला। चौहान को 29 नवम्बर 2005 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। चौहान बालिकाओं के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना शुरू की, जिससे पूरे देश में उनकी पहचान मामा के रूप में हुई। इसके बाद चौहान लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहे। हालांकि 2018 के विस चुनाव में भाजपा बहुमत के आंकड़े से चंद कदम दूर रह गई और कमल नाथ मुख्यमंत्री बने। कमल नाथ की सरकार लंबे समय तक नहीं चल सकी और मार्च, 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ देने के बाद कमल नाथ सत्ता से बाहर हो गए और एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश की कमान संभाल ली।

चौहान अब भाजपा के उन मुख्यमंत्रियों में शामिल हो चुके हैं, जिन्होंने बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा दिनों तक पूरा कर लिया है। मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर 12 साल सात महीने 14 दिन तक काम करते रहे, जबकि शिवराज सिंह चौहान ने पिछले कार्यकाल में ही 13 साल चार दिन का मुख्यमंत्री पद पर निर्वहन कर चुके हैं और उसके बाद वह मार्च, 2020 में भी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर अभी काम कर रहे हैं।

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