यूपी में कांग्रेस का मजबूत होना सीएम योगी के लिए अच्छी खबर है?

Uncategorized राजनीति

नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों नई राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी सूबे में अपनी सियासी जमीन वापस पाने के लिए योगी सरकार के खिलाफ सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पर मोर्चा खोले हुए हैं. प्रियंका की बढ़ती सक्रियता से योगी सरकार परेशान भले ही दिख रही हो लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कांग्रेस की मजबूती सीएम योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के लिए चुनौती नहीं बल्कि एक अवसर है. यही वजह है कि योगी सरकार भी राज्य के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से ज्यादा कांग्रेस द्वारा उठाए गए सवालों को अहमियत दे रही है.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस तीस साल से ज्यादा समय से सत्ता से दूर है. 2022 का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रियंका गांधी ने पुराने चेहरों को साइडलाइन कर अपनी पसंद की टीम तैयार की और उसके बाद बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. सूबे के तमाम मुद्दों पर प्रियंका योगी सरकार पर हमलावर हैं. कांग्रेस की ये सक्रियता बीजेपी से ज्यादा सपा और बसपा के लिए बेचैनी लेकर आई है.
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्रा कहते हैं कि कांग्रेस प्रदेश में जमीनी स्तर पर अभी इतनी मजबूत नहीं है कि अपने दम पर सत्ता हासिल कर सके. इस बात को बीजेपी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बखूबी समझते हैं. बसपा प्रमुख मायावती बीजेपी सरकार के प्रति नरम रुख अख्तियार किए हुए हैं. उनके साइड हो जाने के बाद सूबे में राजनीति योगी बनाम अखिलेश के तौर पर देखी जा रही है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ की भी रणनीति यही होगी कि बीजेपी और योगी विरोधी वोट विपक्ष में किसी एक दल के साथ न जुड़े. यही वजह है कि बीजेपी ढूंढ-ढूंढ कर कांग्रेस को मौका दे रही है.
सुभाष मिश्रा कहते हैं कि सूबे में कांग्रेस उतनी आक्रामक नहीं थी, जितना उसे सीएम योगी ने बना दिया है. प्रवासियों के लिए बस के मामले से लेकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की गिरफ्तारी तक देखें तो साफ तौर पर पता चलता है कि कैसे बीजेपी सरकार कांग्रेस को आक्रामक होने के लिए मुद्दा थाली में सजा कर दे रही है. दूसरी ओर सपा को नजरअंदाज किया जा रहा है. योगी सरकार के इस कदम का सियासी संदेश साफ है कि विपक्ष के तौर पर कांग्रेस राज्य में अहम भूमिका में है. हालांकि, सुभाष मिश्रा यह भी कहते हैं कि बीजेपी को यह दांव महंगा भी पड़ सकता है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में सपा-बसपा का आधार नहीं है बल्कि बीजेपी और कांग्रेस का है. ऐसे में अगर मुस्लिम-ब्राह्मण और एंटी बीजेपी वोट एकजुट हुआ तो बीजेपी के लिए तगड़ा झटका साबित हो सकता है.
गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के बाद भी कांग्रेस को सिर्फ 7 सीटें मिली थीं. वहीं पिछले साल लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी की राजनीति में एंट्री के बाद भी यूपी में कांग्रेस एक सीट पर सिमटकर रह गई थी. खुद राहुल गांधी की अमेठी सीट कांग्रेस के हाथों से छिन गई थी. ऐसे में योगी सरकार का कांग्रेस को तरजीह देने के पीछे अखिलेश और मायावती की राजनीति को कमजोर करना भी एक कारण हो सकता है.
हालांकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू इससे इत्तेफाक नहीं रखते. वे कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी होने के नाते जनता की आवाज बनने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस कार्यकर्ता आवाम के मुद्दों को लेकर सड़कों पर संघर्ष करने से लेकर लाठी खाने और जेल तक जा रहे हैं. प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद से ही कांग्रेस सूबे में फ्रंटफुट पर है. वो किसी पार्टी की पिछलग्गू बनकर नहीं चल रही है. सीएए का मुद्दा हो या फिर सोनभद्र हत्याकांड में मारे गए लोगों के परिवार से मिलने का मामला हो या किसान से लेकर नौजवानों तक के अन्य मुद्दे अथवा प्रदेश की बेटियों को इंसाफ दिलाने का मामला कांग्रेस सबसे आगे नजर आई है जबकि सीबीआई और ईडी के डर से सपा-बसपा खामोश हैं.
अजय कुमार लल्लू कांग्रेस की मजबूत होती जमीन से योगी को राजनीतिक फायदे से इनकार करते हैं. वह कहते हैं कि सूबे में आज हर कोई परेशान है. पिछले 30 साल से सपा, बसपा और बीजेपी की सरकारें रही हैं. इन तीनों दलों ने जाति और धर्म के नाम पर राजनीति की है और सूबे को पीछे ले जाने का काम किया है. प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन मजबूत हो रही है और लोगों में उम्मीद जगी है. इसी के चलते बीजेपी से लेकर सपा और बसपा तक बेचैन और परेशान नजर आ रहे हैं. दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मंत्री अताउर्रहमान कहते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों की मिलीभगत है. सूबे की जनता इस बात को समझती है कि योगी आदित्यनाथ का विकल्प सपा प्रमुख अखिलेश यादव हैं. ऐसे में विपक्ष के वोटों में कन्फ्यूजन पैदा करने के लिए बीजेपी सोची समझी रणनीति के तहत कांग्रेस को बढ़ाने का काम कर रही है. हालांकि, प्रदेश की जनता इस बात को बेहतर तरीके से समझ रही है और चुनाव में इस बात का जवाब भी देगी.वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अमिता वर्मा कहती हैं कि कांग्रेस की समस्या वही पुरानी है. कांग्रेस के पास बड़े नेताओं की भरमार है, पर जमीन पर कार्यकर्ताओं का अकाल है. इस वजह से कांग्रेस के अभियान परवान नहीं चढ़ पाते. प्रियंका आगे-आगे तो उनकी पार्टी के ‘दूसरी-तीसरी लाइन’ के युवा नेता कंधे से कंधा मिलाकर पीछे-पीछे चलते नजर आते हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू और उनके ही जैसे गुमनाम या कम जान-पहचान वाले युवा नेता दिख रहे हैं जबकि कांग्रेस के पुराने और दिग्गज नेता साइड लाइन हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *